Roshni - 1 in Hindi Fiction Stories by Divya Sharma books and stories PDF | रोशनी - 1

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रोशनी - 1

जैसे ही उस पर नजर पड़ी वह किनारे से निकलने लगा।पर वह जीने के बीचोबीच आ धमकी। कबीर को यह देखकर गुस्सा आ गया।वह उसे झिडकते हुए बोला..
"सामने से हट!"
"नहीं हटेगी मैं!बोल क्या कर लेगा?"सीने को अकड़ाते हुए उसनें जवाब दिया।
"देख रौशनी!शराफत से कह रहा हूं हट जा सामने से।"वह गुस्से से बोला।
"ऐ...देख साला!कैसी बात करता है..हा..हा..हा..शराफत....हा..हा...साले दल्ले शराफत की बात करता है।इस जगह पर कोई शरीफ है तो सिर्फ हम धंधे वाली।"वह विद्रुपता से हँस कर बोली।
"देख टाइम खोटी मत कर!मुझे जाने दे।"वह बोला।
"नहीं जाने देगी क्या कर लेगा!मारेगा क्या?"रौशनी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा।
"साली!हाथ हटा अपना।खबरदार जो मुझे अपना गंदा हाथ लगाया तो।"धकेलते हुए वह बोला।
"क्यों?तू क्या मंदिर का पुजारी है!देख तो ले कहाँ खड़ा है?और एक बात बता!तू खाता तो हमसे ही है तब साले वो कमाई गंदी नहीं होती जो गाहक ढूंढ कर लाता है।"
"तेरे जैसे दल्लों की वजह से ही हम गंदी होती है।"
"चल फूट ले अब!मेरेको घर जाना है और तू भी ज्यादा दिमाग मत लगा जा कर देख अपने ग्राहक को।आया है वो वहाँ।"कबीर ने उसे हटाते हुए कहा।
"नहीं जायेगी अपून वहाँ!आज तेरे साथ ही कमरें में जाना है।एक बात बता सब इधर आता है मस्ती करता है और तू एक बार हमें देखता भी नहीं!",
"देख रौशनी बहुत हो गया।मुझे कोई बात नहीं करनी हट सामने से और निकल ले।"कबीर अधीरता से बोला।
"आज मैं तेरे साथ ही सोयेगी वो भी बिन पैसे लिए।बोल चलता है कि नहीं!देख मैं तेरे को पैसा देगी।"वह हँसते हुए बोली।

"यह क्या बकवास कर रही हैं तू?उसके बालों को पकड़कर कबीर ने उसे एक तरफ खींच दिया।और नीचे उतरने लगा।
"क्यों बेईमान!हमारे जिस्मों की कमाई से पलने वाले दल्ले, तेरा ईमान बस इस कोठे को गुलजार करना है?”
कबीर ने वापस मुडकर देखा और जीने से उतर गया।रौशनी उसे तब तक देखती रही जब तक आँखों से ओझल न हो गया।
“चला गया साला।”कहकर वह पलटी तो देखा सामने शब्बो आपा खड़ी थी जो उसे देख मुस्कुरा रही थी।
“क्या है रौशनी!क्यों परेशान करती है तू उसे दिल तो नहीं लगा बैठी उससे?”आँखों में झांकते हुए शब्बो ने कहा।
“दिल!हा..हा..हा..हा..आपा यहाँ दिल छोड़ सब कुछ लगता है।बहुत शरीफ बनता है।दलाली करता है और साला नखरे करता है।एक दिन इसका घंमड तोडेगी मैं।”हँसते हुए रौशनी ने कहा।
“ऐसे न सताया कर।इतना बुरा भी नहीं।भले ही गाहक लाता है लेकिन आज तक यहाँ किसी मजबूर लड़की को न लाया।”
जानती हूँ आपा!तभी तो भाव देती हूं इसे।”
“ठीक है बिन्नू!जा सेठ हलकान हुए जा रहा है तेरे लिए।”
“होने दे।अभी अपून का मन नहीं।”लापरवाही से वह बोली।
“गाहक को नाराज नहीं करते।तुझे तो खुश होना चाहिए इतना बड़ा सेठ तेरे लिए आता है।हमारी तरह रोज नये मर्द नहीं बदलने पड़ते।”समझाते हुए शब्बो ने कहा।
“क्या आपा!उसे मर्द कहती हो।मर्द होता तो घरवाली को धोखा नहीं देता।चल मैं चलती है।”शब्बो की आँखों में सवाल छोड़ वह आगे निकल गई।
पता नहीं क्या बात थी इस लड़की में जो सब इसकी आँखों से घबरा जाते।इस बदनाम गली की सबसे मंहगी धंधे वाली।जिसके लिए शहर का नामी सेठ रोज चला आता।
कमरे में हल्की रोशनी थी।वह बैठी कुछ चीजों को टटोल रही थी।
हाथ में कुछ लेकर वह आईने के सामने खड़ी हो गई।बड़ी झील से आँखें।काले लम्बे बाल।गालों पर ऐसी सूर्खियां जैसे किसी राजकुमारी के हो।माथे के बीचोबीच उसनें बिंदी लगा ली।चुनर ओढकर वह खुद को निहारने लगी।किसी दुल्हन सा रूप खिल आया उसके चेहरे पर।
तभी दो बूंदें आँखों से टपक गई।चूनर एक तरफ फेंक वह बिस्तर पर औंधी हो सिसकने लगी।
©

क्रमशः